स्वस्थ दिनचर्या कैसा हो,लिए आयुर्वेद के अनुसार स्वस्थ दिनचर्या ऐसी होनी चाहिए
मनुष्य को अगर जिंदगी भर स्वस्थ रहना है।तो उसको दिनचर्या ,रात्रि चरण,ऋतुचर्या इनका पालन करना आयुर्वेद के अनुसार आवश्यक माना गया है।व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए दिनचर्या का पालन आवश्यक है।स्वस्थ रहने के लिए दोषों का समां होना कारणीभुत होता हैं।
नमस्कार दोस्तों आप सभी का स्वागत है।हमारे सर्वांग आयुर्वेद में, आज का हमारा विषय।आपको यह जानकारी देगा कि,आपकी दिनचर्या कैसी हो सुबह से उठने से लेकर शाम को सोने के वक्त तक जिससे आपको शारीरिक और मानसिक लाभ प्राप्त होगा, तो चलिए शुरू करते हैं।
स्वस्थ व्यक्ति ने अपना स्वास्थ्य कायम रखने के लिए हर रोज करने वाले उपक्रम को दिनचर्या कहते हैं।
सुबह उठने से लेकर दूसरे दिन उठने तक के होने वाली क्रिया को दिनचर्या कहते हैं।
कैसा होना चाहिए स्वस्थ दिनचर्या का क्रम (Healthy Daily Routine)-
1)सुबह जल्दी उठाना :-
रात की नींद पूरी हो तो कल सुबह उठने का योग्य काल ब्रह्म मुहूर्त आयुर्वेद में बताया गया है।सूर्योदय के पहले एक प्रहर मतलब ब्रह्मा मुहूर्ता कहलाता है।इस समय शरीर और निसर्ग इन दोनों में सत्व गुण का अधिक क्या रहता है उस वजह से मन इंद्रिय और बुद्धि प्रसन्न रहते हैं।
बालक, रुग्ण और रात में जगे हुए व्यक्ति को ब्रह्मा मुहूर्ता पर उठने से निषेध बताया गया है।
2) शरीर से चिंता दूर करें :-
स्वस्थ दिनचर्या कैसा हो,बीते दिनों में किए हुए बुरे कर्मों का विचार न कर क्लेश और चिंता दूर रखकर मानसिक शांति बनाई रखें.
शांतता प्राप्ति के लिए सुबह ईश्वर का स्मरण जरुर करें. सूर्योदय से पहले एक गिलास पानी पिए. दुबले व्यक्ति ने स्वर्ण के बर्तन में रखा पानी पिए और स्थूल व्यक्ति ने तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पिए.
इससे शरीर में होने वाली कॉन्स्टिपेशन, अर्श, एसिडिटी, बुखार, पेट के रोग आदि से रह मिलती है।
3)मलत्याग करना :-
स्वस्थ दिनचर्या कैसा हो,सुबह उठाने के बाद मल, मूत्र का त्याग करें. उसका धारण ना करें,मलत्याग करने से स्वास्थ्य का रक्षण होता है।इससे पेट मे गैस, पेट का दर्द कम होता है। ध्यान रखें ,माल त्याग करते समय जोर ना लगाए.
4) दाँत और जबान साफ करना :-
दाँत और जबान से गन्दगी निकलना, मुँह से दुर्गान्धि हटाना, खाना खाते समय उसका स्वाद निर्माण होना साथ ही दाँत स्वच्छ रखना इसके लिए रोज दाँत साफ करें. इसके लिए सुबह और रात मे दो बार ब्रश करें.
जबान साफ करने के लिए सुवर्ण, ताम्बे इनमे से किसी एक का उपयोग करें
5) मुखप्रक्षालन :-
मल त्याग के बाद हाथ पैर और मुँह अच्छे से धोए. इसके लिए गुनगुनें पानी का उपयोग करें.इससे मुँह के रोग न होने से मदद मिलती हैं।
6) क्षोरकर्म :-
इसका मतलब महीने मे तीन बार और पाँच दिन के बाद बाल, नाख़ून, और मुँह के ऊपर के बाल कांटे. क्षोरकर्म करने से आयु की वृद्धि होती है. अपना रूप अच्छा, और मन प्रसन्न लगता है।
7) अंजन :-
आँखों की दृष्टि अच्छी रहने के लिए उपायुक्त औषधि आँखों मे लगाया जाता है। जिससे अंजन बोलते है।
अंजन लगाने से आंखें सुंदर दिखती है। सुक्ष्म अतिसुक्ष्म वस्तु की परख मिलती है, आंखों में होने वाली लालिमा, खुजली, आँखों से पानी आना यह रोग दूर होतै है।
8) कर्णपुरण :-
हररोज या फिर हफ्ते मे एक बार कान मे तिलतेल डाले. इससे कान के रोग, सिरदर्द, मान का दर्द कम होता है। इसके लिए एक कान मे एक ही समय तेल डालना है।और उसके बाद कान के पीछे की ओर हल्के से मालिश करें. यह प्रक्रिया 3-4 मिनट तक दोहराए. इससे आपको काफी आराम महसूस होगा
9) अभ्याग :-
सारे शरीर पर तेल से किये जाने वाली मालिश को अभ्याग कहते है।इसमें कान में तेल डालना हाथ और पैरों के तलवे पर तेल लगाना, सिर पे मालिश करना साथ ही पुरे शरीर पर तेल से मालिश करना यह सब क्रिया शामिल होती है. इससे धातु की पुष्टि होती है, दीर्घायु प्राप्त होता है नींद अच्छे से अति है और शरीर का दर्द कम होता है।अभ्याग शीतकाल मे तिलतैल लगाकर करें और गर्मी के मौसम मे शीत गुण युक्त तेल से मालिश करें.
10) व्यायाम :-
व्यायाम करने से शारीरिक और मानसिक स्थर्य और शरीर में बल प्राप्त होता है।इससे शरीर की मांस पेशी दृढ होती है, रोज सुबह आधा घंटा वाकिंग करें या फिर दौड़े. वसंत ऋतू या फिर ठंडी के मौसम मे व्यायाम करना शरीर के लिए अच्छा साबित होता है।इससे कौन सा भी काम करने में उत्साह निर्माण होता है।पाचनशक्ति सुधरती है।व्यक्ति ने अपने बल से आधा पसीना आने तक व्यायाम करें.
जिनको भूक लगी हैं।क्रोधित है, छोटे बच्चे, बुजुर्ग आदि लोग व्यायाम न करें
11) स्नान :-
व्यायाम करने के बाद शुद्ध जल से संपूर्ण शरीर की शुद्धि करके स्नान करें. सिर के ऊपर से गरम पानी से स्नान न करें क्युकी इससे बाल और आँखों को नुकसान हो सकता है।स्नान करने से शरीर मे पवित्रता आति है।यह पुष्टि कारक, बल और कांति वर्धक होता है।
12) शरीर धारण :-
स्नान के बाद ऋतू के अनुसार स्वछ और कॉटन के वस्त्र धारण करें. उसके बाद शरीर पर भूषण धारण करें.
13) शारीरिक परिश्रम :-
इन सब के बाद व्यक्ति को शारीरिक परिश्रम करना जरुरी है।यह अपने शरीर से ज्यादा परिश्रम ना करें.
14) विश्राम :-
शारीरिक व मानसिक परिश्रम करने के बाद व्यक्ति थकान महसूस करता है।आराम करने से थकान दूर होती है।बैठ के आराम करने से मानसिक श्रम दूर करता है।सो कर आराम करने से निद्रा प्राप्त होती है।
15) रात्रिचर्या :-
रात का भोजन 9 बजे से पहले करें. भोजन दिन के तुलना मे कम मात्रा मे करें. भोजन होने के 2 घंटे बाद ही बिस्तर पर लेटे,भोजन होने के बाद शत पौली करें और फिर पूरब या दक्षिण दिशा की और सिर कर के अच्छी नींद ले.
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